जन्मेजय का नाग यज्ञ और शत्रु द्वारा अवश्यम्भावी आपत के निवारण का उपाय
अपनी माता कद्रू द्वारा विनीता के विरुद्ध षणयन्त्र में अपनी माता का सहयोग न किये जाने के कारण माता कद्रू द्वारा नागो को श्राप दिया जा चूका था कि उनको यज्ञ की अग्नि में जलकर स्वाहा होना पड़ेगा। नागो की मुख्य चिंता ये भी थी कि ब्रह्मा जी द्वारा इस श्राप का अनुमोदन किया जा चूका था। यानी की ये वो अनहोनी थी जिसे घटित होना ही होना था।
इस चिंता को लेकर नागराज वसुकि अपने मंत्री परिषद् के साथ मंत्रणा कर रहे थे और सुझाव मांग रहे थे। मंत्रिओं ने सुझाव दिया की हमें ब्राह्मण का रूप बनाकर जाना चाहिए और भिक्षा में ये माँग लेना चाहिए कि वो भविष्य में ऐसा कोई यज्ञ न करें। परम विद्वान नागो ने सुझाया की हमें जन्मेजय का विश्वास जीतकर उनका विश्वासपात्र मंत्री बन जाना चाहिए और जब भी वे नाग यज्ञ पर मंत्रणा करें तो हम इसके अनर्थ को समझाकर इस यज्ञ को न करने की सलाह देंगे।
कुछ भयभीत नागो ने सुझाव दिया की जब यज्ञ शुरू होगा तब हम यज्ञ कर्ता ब्राह्मणो को दश लेंगे, यज्ञ पात्रों पर मल कर देंगे। यज्ञ का साधन न होने से यज्ञ नहीं हो पायेगा। कुछ वीर रस में डूबे नागो ने जन्मेजय को ही छल पूर्वक मारने की बात कही।
नाग राज वासुकि को ये उपाय प्राप्त-स्थिति में व्यावहारिक न लगे इसलिए उन्हीने एक वृद्ध मंत्री एलापत्र से इसका उपाय जानना चाहा। एलापत्र ने क्या उपाय बताया इसको जानने से पहले आइये अभी तक प्राप्त उपायों का विश्लेषण कर लेते हैं क्यूंकि इनमे की वो सूत्र छिपे हैं जिनका अनुपालन करने संभावित खतरे को खत्म किया जा सकता हैं। एलापत्र के सुझाव अतिआवश्यक हैं जिसके बिना कथन अधूरा रहेगा।
अभी तक सुझावो को अगर हम सूत्रों में कहे तो कहना पड़ेगा कि:
उपाय # 1. शत्रु में उदारता का भाव जगाना और शत्रुता को नष्ट करने का आग्रह करना
खतरा : क्या हो अगर शत्रु उदार न हुआ तो ?
उपाय # 2. अगर शत्रु से संवाद स्थापित करके मित्रता करके उसका विश्वास पात्र बना जाए और मित्रता कर ले
खतरा : क्या हो अगर मित्रता आदि उपाय निष्फल हो जाए ?
उपाय # 3. शत्रु के साधनो को नष्ट करके
खतरा : क्या हो अगर शत्रु के साधनो का पूर्ण ज्ञान न हो या वो उन साधनों का उपयोग कर रहा हो जिनपर हम भी आश्रित हैं !
उपाय #4. शत्रु की शक्ति को छल पूर्वक नष्ट कर देना
खतरा : क्या हो अगर शत्रु आपसे ज्यादा शातिर निकले ?
अगर हम ऊपर दिए हुए चारो सूत्रों का बुद्धमत्ता पूर्वक पालन करें तो हम आपत को नष्ट कर सकते हैं। उपायों के उपयोग से पहले संलग्न खतरों को भी ध्यान में रखना चाहिए जैसा की वसुकि ने किया। वासुकि को प्राप्त स्थिति में ये चारो उपाय प्रभावकारी नहीं लगे। यद्यपि जन्मेजय उदार तो थे पर क्षत्रिय धर्म का उनको पूर्ण ज्ञान था। प्रजा के अनिष्टकर नागो से वो कभी मित्रता न करते।
आइये अब हम जानते हैं की एलापत्र ने क्या उपाय सुझाया। एलापत्र ने कहा की ये आपत आने की मूल वजह को जानो, और वहां से निवारण करने का प्रयास करो। सम्भावी आपत का कारण ब्रह्मा जी का अनुमोदन हैं इसलिए उनसे जाकर निवेदन करें की ये आपत न आने पाए (उपाय #1) । अब वासुकि सपरिवार और मंत्री परिषद् के साथ ब्रह्मा जी के पास गए और फिर ब्रह्मा जी ने कद्रू के श्राप के अनुमोदन का रहस्य बताकर नागो को संतुष्ट किया और आस्तीक ऋषि, जिन्होंने नाग यज्ञ के सत्र को रुकवाया था, के पैदा होने का संयोग कैसे बने इसका उपाय वासुकि को बताया। इस प्रकार वासुकि ने नाग यज्ञ द्वारा अपने समूल संहार को बचाया लिया।